15-02-2000  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

मन को स्वच्छ, बुद्धि को क्लियर रख डबल लाइट फरिश्ते स्थिति का अनुभव करो

आज बापदादा अपने स्वराज्य अधिकारी बच्चों को देख रहे हैं। स्वराज्य ब्राह्मण जीवन का जन्म सिद्ध अधिकार है। बापदादा ने हर एक ब्राह्मण को स्वराज्य के तख्तनशीन बना दिया है। स्वराज्य का अधिकार जन्मते ही हर एक ब्राह्मण आत्मा को प्राप्त है। जितना स्वराज्य स्थित बनते हो उतना ही अपने में लाइट और माइट का अनुभव करते हो।

बापदादा आज हर एक बच्चे के मस्तक पर लाइट का ताज देख रहे हैं। जितनी अपने में माइट धारण की है उतना ही नम्बरवार लाइट का ताज चमकता है। बापदादा ने सभी बच्चों को सर्व शक्तियाँ अधिकार में दी है। हर एक मास्टर सर्वशक्तिवान है, परन्तु धारण करने में नम्बरवार बन गये हैं। बापदादा ने देखा कि सर्वशक्तियों की नॉलेज भी सबमें है, धारणा भी है लेकिन एक बात का अन्तर पड़ जाता है। कोई भी ब्राह्मण आत्मा से पूछो - हर एक शक्ति का वर्णन भी बहुत अच्छा करेंगे, प्राप्ति का वर्णन भी बहुत अच्छा करेंगे। परन्तु अन्तर यह है कि समय पर जिस शक्ति की आवश्यकता है, उस समय पर वह शक्ति कार्य में नहीं लगा सकते। समय के बाद महसूस करते हैं कि इस शक्ति की आवश्यकता थी। बापदादा बच्चों को कहते हैं - सर्व शक्तियों का वर्सा इतना शक्तिशाली है जो कोई भी समस्या आपके आगे ठहर नहीं सकती है। समस्या-मुक्त बन सकते हो। सिर्फ सर्व शक्तियों को इमर्ज रूप में स्मृति में रखो और समय पर कार्य में लगाओ। इसके लिए अपने बुद्धि की लाइन क्लीयर रखो। जितनी बुद्धि की लाइन क्लीयर और क्लीन होगी उतना निर्णय शक्ति तीव्र होने के कारण जिस समय जो शक्ति की आवश्यकता है वह कार्य में लगा सकेंगे क्योंकि समय के प्रमाण बापदादा हर एक बच्चे को विघ्न-मुक्त, समस्या-मुक्त, मेहनत के पुरूषार्थ-मुक्त देखने चाहते हैं। बनना तो सबको है ही लेकिन बहुतकाल का यह अभ्यास आवश्यक है। ब्रह्मा बाबा का विशेष संस्कार देखा - ``तुरत दान महापुण्य''। जीवन के आरम्भ से हर कार्य में तुरत दान भी, तुरत काम भी किया। ब्रह्मा बाप की विशेषता - निर्णय-शक्ति सदा फास्ट रही। तो बापदादा ने रिज़ल्ट देखी। सबको साथ तो ले ही जाना है। बापदादा के साथ चलने वाले हो ना! या पीछे-पीछे आने वाले हो? जब साथ चलना ही है तो फालो ब्रह्मा बाप। कर्म में फालो ब्रह्मा बाप और स्थिति में निराकारी शिव बाप को फालो करना है। फालो करना आता है ना?

डबल विदेशियों को फालो करना आता है? फालो करना तो सहज है ना! जब फालो ही करना है तो क्यों, क्या, कैसे... यह समाप्त हो जाता है। और सबको अनुभव है कि व्यर्थ संकल्प के निमित्त यह क्यों, क्या, कैसे... ही आधार बनते हैं। फालो फादर में यह शब्द समाप्त हो जाता है। कैसे नहीं- ऐसे! बुद्धि फौरन जज करती है ऐसे चलो, ऐसे करो। तो बापदादा आज विशेष सभी बच्चों को चाहे पहले बारी आये हैं, चाहे पुराने हैं, यही इशारा देते हैं कि अपने मन को स्वच्छ रखो। बहुतों के मन में अभी भी व्यर्थ और निगेटिव के दाग छोटे-बड़े हैं। इसके कारण पुरूषार्थ की श्रेष्ठ स्पीड, तीव्रगति में रूकावट आती है। बापदादा सदा श्रीमत देते हैं कि मन में सदा हर आत्मा के प्रति शुभ-भावना और शुभ-कामना रखो - यह है स्वच्छ मन। अपकारी पर भी उपकार की वृत्ति रखना- यह है स्वच्छ मन। स्वयं के प्रति वा अन्य के प्रति व्यर्थ संकल्प आना - यह स्वच्छ मन नहीं है। तो स्वच्छ मन और क्लीन और क्लीयर बुद्धि। जज करो, अपने आपको अटेन्शन से देखो, ऊपर-ऊपर से नहीं, ठीक है, ठीक है। नहीं, सोच के देखो - मन और बुद्धि स्पष्ट है, श्रेष्ठ है? तब डबल लाइट स्थिति बन सकती है। बाप समान स्थिति बनाने का यही सहज साधन है। और यह अभ्यास अन्त में नहीं, बहुतकाल का आवश्यक है। तो चेक करना आता है? अपने को चेक करना, दूसरे को नहीं करना। बापदादा ने पहले भी हँसी की बात बताई थी कि कई बच्चों की दूर की नज़र बहुत तेज़ है और नज़दीक की नज़र कमज़ोर है! इसलिए दूसरे को जज करने में बहुत होशियार हैं। अपने को चेक करने में कमज़ोर नहीं बनना।

बापदादा ने पहले भी कहा है कि जैसे अभी यह पक्का हो गया है कि मैं ब्रह्माकुमारी/ब्रह्माकुमार हूँ। चलते-फिरते-सोचते - हम ब्रह्माकुमारी हैं, हम ब्रह्माकुमार ब्राह्मण आत्मा हैं। ऐसे अभी यह नेचुरल स्मृति और नेचर बनाओ कि ``मैं फरिश्ता हूँ।'' अमृतवेले उठते ही यह पक्का करो कि मैं फरिश्ता परमात्म-श्रीमत पर नीचे इस साकार तन में आया हूँ, सभी को सन्देश देने के लिए वा श्रेष्ठ कर्म करने के लिए। कार्य पूरा हुआ और अपने शान्ति की स्थिति में स्थित हो जाओ। ऊँची स्थिति में चले जाओ। एक-दो को भी फरिश्ते स्वरूप में देखो। आपकी वृत्ति दूसरे को भी धीरे-धीरे फरिश्ता बना देगी। आपकी दृष्टि दूसरे पर भी प्रभाव डालेगी। यह पक्का है कि हम फरिश्ते हैं? `फरिश्ता भव' का वरदान सभी को मिला हुआ है? एक सेकण्ड में फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट बन सकते हो? एक सेकण्ड में, मिनट में नहीं, 10 सेकण्ड में नहीं, एक सेकण्ड में सोचा और बना, ऐसा अभ्यास है? अच्छा जो एक सेकण्ड में बन सकते हैं, दो सेकण्ड नहीं, एक सेकण्ड में बन सकते हैं, वह एक हाथ की ताली बजाओ। बन सकते हैं? ऐसे ही नहीं हाथ उठाना। डबल फारेनर नहीं उठा रहे हैं! टाइम लगता है क्या? अच्छा जो समझते हैं कि थोड़ा टाइम लगता है, एक सेकण्ड में नहीं, थोड़ा टाइम लगता है, वह हाथ उठाओ। (बहुतों ने हाथ उठाया) अच्छा है, लेकिन लास्ट घड़ी का पेपर एक सेकण्ड में आना है, फिर क्या करेंगे? अचानक आना है और सेकण्ड का आना है। हाथ उठाया, कोई हर्जा नहीं। महसूस किया, यह भी बहुत अच्छा। परन्तु यह अभ्यास करना ही है। करना ही पड़ेगा नहीं, करना ही है। यह अभ्यास बहुत-बहुत-बहुत आवश्यक है। चलो फिर भी बापदादा कुछ टाइम देते हैं। कितना टाइम चाहिए? दो हज़ार तक चाहिए। 21वीं सदी तो आप लोगों ने चैलेन्ज की है, ढिंढोरा पीटा है, याद है? चैलेन्ज किया है - गोल्डन एजड दुनिया आयेगी या वातावरण बनायेंगे। चैलेन्ज किया है ना! तो इतने तक तो बहुत टाइम है। जितना स्व पर अटेन्शन दे सको, दे सको भी नहीं, देना ही है। जैसे देह-भान में आने में कितना टाइम लगता है! दो सेकण्ड? जब चाहते भी नहीं हो लेकिन देह भान में आ जाते हो, तो कितना टाइम लगता है? एक सेकण्ड या उससे भी कम लगता है? पता ही नहीं पड़ता है कि देह-भान में आ भी गये हैं। ऐसे ही यह अभ्यास करो - कुछ भी हो, क्या भी कर रहे हो लेकिन यह भी पता ही नहीं पड़े कि मैं सोल-कान्सेस, पावरफुल स्थिति में नेचुरल हो गया हूँ। फरिश्ता स्थिति भी नेचुरल होनी चाहिए। जितनी अपनी नेचर फरिश्ते-पन की बनायेंगे तो नेचर स्थिति को नेचुरल कर देगी। तो बापदादा कितने समय के बाद पूछे? कितना समय चाहिए? जयन्ती बोलो - कितना समय चाहिए? फारेन की तरफ से आप बोलो - कितना समय फारेन वालों को चाहिए? जनक बोलो। (दादी जी ने कहा आज की आज होगी, कल नहीं) अगर आज की आज है तो अभी सभी फरिश्ते हो गये? हो जायेंगे नहीं। अगर जायेंगे तो कब तक? बापदादा ने आज ब्रह्मा बाप का कौन-सा संस्कार बताया? - `तुरत दान महापुण्य।'

बापदादा का हर एक बच्चे से प्यार है, तो ऐसे ही समझते हैं कि एक बच्चा भी कम नहीं रहे। नम्बरवार क्यों? सभी नम्बरवन हो जाएं तो कितना अच्छा है। अच्छा - आज बहुत ग्रुप्स आये हुए हैं।

प्रशासक वर्ग (एडमिनिस्ट्रेशन विंग) - आपस में मिलकर क्या प्रोग्राम बनाया? ऐसा तीव्र पुरूषार्थ का प्लैन बनाया कि जल्द-से-जल्द आप श्रेष्ठ आत्माओं के हाथ में यह कार्य आ जाए। विश्व-परिवर्तन करना है तो सारी एडमिनिस्ट्रेशन बदलनी पड़ेगी ना! कैसे यह कार्य सहज बढ़ता जाए, फैलता जाए, ऐसे सोचा? जो भी कम से कम बड़े-बड़े शहरों में निमित्त हैं उन्हों को पर्सनल सन्देश देने का प्लैन बनाया है? कम से कम यह तो समझें कि अब आध्यात्मिकता द्वारा परिवर्तन हो सकता है और होना चाहिए। तो अपने वर्ग को जगाना इसीलिए यह वर्ग बनाये गये हैं। तो बापदादा वर्ग वालों की सेवा देख करके खुश है परन्तु यह रिज़ल्ट देखनी है कि हर वर्ग वालों ने अपने-अपने वर्ग को कहाँ तक मैसेज दिया है! थोड़ा बहुत जगाया है वा साथी बनाया है? सहयोगी, साथी बनाया है? ब्रह्माकुमार नहीं बनाया लेकिन सहयोगी साथी बनाया?

सभी वर्गों को बापदादा कह रहे हैं कि जैसे अभी धर्म-नेतायें आये, नम्बरवन वाले नहीं थे फिर भी एक स्टेज पर सब इकट्ठे हुए और सभी के मुख से यह निकला कि हम सबको मिलकर आध्यात्मिक शक्ति को फैलाना चाहिए। ऐसे हर वर्ग वाले जो भी आये हो, उस हर वर्ग वाले को यह रिज़ल्ट निकालनी है कि हमारे वर्ग वालों में मैसेज कहाँ तक पहुँचा है?

दूसरा - आध्यात्मिकता की आवश्यकता है और हम भी सहयोगी बनें - यह रिज़ल्ट हो। रेग्युलर स्टूडैण्ट नहीं बनते लेकिन सहयोगी बन सकते हैं। तो अभी तक हर वर्ग वालों की जो भी सेवा की है, जैसे अभी धर्म-नेताओं को बुलाया, ऐसे हर देश से हर विंग वालों का करो। पहले इण्डिया में ही करो, पीछे इण्टरनेशनल करना, हर वर्ग के ऐसे भिन्न-भिन्न स्टेज वाले इकट्ठे हो और यह अनुभव करें कि हम लोगों को सहयोगी बनना है। यह हर वर्ग की रिज़ल्ट अब तक कितनी निकली है? और आगे का क्या प्लैन है? क्योंकि एक वर्ग, एक-एक को अगर लक्ष्य रखकर समीप लायेंगे तो फिर सब वर्ग के जो समीप सहयोगी हैं ना, उन्हों का संगठन करके बड़ा संगठन बनायेंगे। और एक दो को देख करके उमंग-उत्साह भी आता है। अभी बंटे हुए हैं, कोई शहर में कितने हैं, कोई शहर में कितने हैं। अच्छे-अच्छे हैं भी परन्तु सबका पहले संगठन इकट्ठे करो और फिर सबका मिलकर संगठन मधुबन में करेंगे। तो ऐसे प्लैन कुछ बनाया? बना होगा जरूर। फारेन वालों को भी सन्देश भेजा था कि बिखरे हुए बहुत हैं। अगर भारत में भी देखो तो अच्छी-अच्छी सहयोगी आत्मायें जगह-जगह पर निकली हैं परन्तु गुप्त रह जाती हैं। उन्हों को मिलाकर कोई विशेष प्रोग्राम रखकर अनुभव की लेन-देन करें उससे अन्तर पड़ जाता है, समीप आ जाते हैं। किस वर्ग के 5 होंगे, किसके 8 होंगे, किसके 25-30 भी होंगे। संगठन में आने से आगे बढ़ जाते हैं। उमंग-उल्लास बढ़ता है। तो अभी तक जो सभी वर्गों की सेवा हुई है, उसकी रिज़ल्ट निकालनी चाहिए। सुना, सभी वर्ग वाले सुन रहे हैं ना! सभी वर्ग वाले जो आज विशेष आये हैं वह हाथ उठाओ। बहुत हैं। तो अभी रिज़ल्ट देना - कितने-कितने, कौन-कौन और कितनी परसेन्ट में समीप सहयोगी हैं? फिर उन्हों के लिए रमणीक प्रोग्राम बनायेंगे। ठीक है ना!

मधुबन वालों को खाली नहीं रहना है। खाली रहने चाहते हैं? बिज़ी रहने चाहते हैं ना! या थक जाते हैं? बीच-बीच में 15 दिन छुट्टी भी होती है और होनी भी चाहिए। परन्तु प्रोग्राम के पीछे प्रोग्राम लिस्ट में होना चाहिए तो उमंग-उत्साह रहता है, नहीं तो जब सेवा नहीं होती है तो दादी एक कम्पलेन करती है। कम्पलेन बतायें? कहती है सभी कहते हैं - अपने-अपने गाँव में जायें। चक्कर लगाने जायें, सेवा के लिए भी चक्कर लगाने जायें। इसीलिए बिजी रखना अच्छा है। बिज़ी होंगे तो खिट-खिट भी नहीं होगी। और देखो मधुबन वालों की एक विशेषता पर बापदादा पद्मगुणा मुबारक देते हैं। 100 गुणा भी नहीं, पद्मगुणा। किस बात पर? जब भी कोई आते हैं तो मधुबन वालों में ऐसी सेवा की लगन लग जाती है जो कुछ भी अन्दर हो, छिप जाता है। अव्यक्ति दिखाई देते हैं। अथक दिखाई देते हैं और रिमार्क लिखकर जाते हैं कि यहाँ तो हर एक फरिश्ता लग रहा है। तो यह विशेषता बहुत अच्छी है जो उस समय विशेष विल पावर आ जाती है। सेवा की चमक आ जाती है। तो यह सर्टिफकेट तो बापदादा देता है। मुबारक है ना! तो ताली तो बजाओ मधुबन वाले। बहुत अच्छा। बापदादा भी उस समय चक्कर लगाने आता है, आप लोगों को पता नहीं पड़ता है लेकिन बापदादा चक्कर लगाने आता है। तो यह विशेषता मधुबन की और आगे बढ़ती जायेगी। अच्छा।

मीडिया विंग - फारेन में भी मीडिया का शुरू हुआ है ना! बापदादा ने देखा है कि मीडिया में अभी मेहनत अच्छी की है। अभी अखबारों में निकलने शुरू हुआ है और प्यार से भी देते हैं। तो मेहनत का फल भी मिल रहा है। अभी और भी विशेष अखबारों में, जैसे टी.वी. में किसी ने भी परमानेंट थोड़ा समय भी दे दिया है ना! रोज़ चलता है ना। तो यह प्रोग्रेस अच्छी है। सभी को सुनने में अच्छा अनुभव होता है। ऐसे अखबार में विशेष चाहे सप्ताह में, चाहे रोज़, चाहे हर दूसरे दिन एक पीस (एक टुकड़ा) मुकरर हो जाए कि यह आध्यात्म-शक्ति बढ़ाने का मौका है। ऐसा पुरूषार्थ करो। वैसे सफलता है, कनेक्शन भी अच्छा बढ़ता जाता है। अभी कुछ कमाल करके दिखाओ अखबार की। कर सकते हैं? ग्रुप कर सकता है? हाथ उठाओ - हाँ करेंगे। उमंग-उल्लास है तो सफलता है ही। क्यों नहीं हो सकता है! आखिर तो समय आयेगा जो सब साधन आपकी तरफ से यूज़ होंगे। आफर करेंगे आपको। आफर करेंगे कुछ दो, कुछ दो। मदद लो। अभी आप लोगों को कहना पड़ता है - सहयोगी बनो, फिर वह कहेंगे - हमारे को सहयोगी बनाओ। सिर्फ यह बात पक्की रखना - फरिश्ता, फरिश्ता, फरिश्ता! फिर देखो आपका काम कितना जल्दी होता है। पीछे पड़ना नहीं पड़ेगा लेकिन परछाई के समान वह आपेही पीछे आयेंगे। बस सिर्फ आपकी अवस्थाओं के रूकने से रूका हुआ है। एवररेडी बन जाओ तो सिर्फ स्विच दबाने की देरी है, बस। अच्छा कर रहे हैं और करेंगे।

स्पार्क ग्रुप - यह बहुत बड़ा ग्रुप है। स्पार्क वाले रिसर्च करते हैं ना! स्पार्क वालों को विशेष यह अटेन्शन में रहे कि जैसे साइन्स प्रत्यक्ष अनुभव कराती है, मानो गर्मा है तो साइन्स के साधन ठण्डी का प्रत्यक्ष अनुभव कराते हैं। ऐसे रीसर्च वालों को विशेष ऐसा प्लैन बनाना चाहिए कि हर एक जो बाप की या आत्मा की विशेषतायें हैं, ज्ञान-स्वरूप, शान्त-स्वरूप, आनन्द-स्वरूप, शक्ति-स्वरूप.... इस एक-एक विशेषता का प्रैक्टिकल में अनुभव क्या होता है। वह ऐसा सहज साधन निकालो जो कोई भी अनुभव करने चाहे तो चाहे थोड़े समय के लिए भी अनुभव कर सके कि शान्ति इसको कहते हैं, शक्ति की अनुभूति इसको कहते हैं। एक सेकण्ड, दो सेकण्ड भी अनुभव कराने की विधि निकालो। तो एक सेकण्ड भी अगर   81 किसको अनुभव हो गया तो वह अनुभव आकर्षित करता है। ऐसी कोई इन्वेन्शन निकालो। आपके सामने आवे और जिस विशेषता का अनुभव करने चाहे वह कर सके। क्या-क्या भिन्न-भिन्न स्थिति होती है, जैसे साधना करने वाले जो साधु हैं वह प्रैक्टिकल में उन्हों को अनुभव कराते हैं, चक्र नाभी से शुरू हुआ फिर ऊपर गया, फिर ऊपर जाके क्या अनुभूति होती है। ऐसे आप अपने विधिपूर्वक, मन और बुद्धि द्वारा उनको अनुभव कराओ। लाइट बैठकर नहीं दिखाना है लेकिन लाइट का अनुभव करें।

रिसर्च का अर्थ ही है - `प्रत्यक्ष विधि द्वारा अनुभव करना-कराना।' तो ऐसा प्लैन बनाके प्रैक्टिकल में इसकी विधि निकालो। जैसे योग शिविर की विधि निकाली ना तो टैम्प्रेरी टाइम में योग शिविर में जो भी आते हैं वह उस समय तो अनुभव करते हैं ना! और उन्हों को वह अनुभव याद भी रहता है। ऐसे कोई-न-कोई गुण, कोई-न-कोई शक्ति, कोई-न-कोई अनादि संस्कार, उन्हों की अनुभूति कराओ। तो ऐसी रिसर्च वालों को पहले स्वयं अनुभूति करनी पड़ेगी फिर विधि बनाओ और दूसरों को अनुभूति कराओ। आजकल लोगों को भक्ति में जैसे चमत्कार चाहिए ना, मेहनत नहीं - `चमत्कार।' ऐसे आध्यात्मिक रूप में अनुभव चाहिए। अनुभवी कभी बदल नहीं सकता। जल्दी-जल्दी अनुभव के आधार से बढ़ते जायेंगे। सुना। अभी नई-नई विधि निकालो। आप कहते जाओ वह अनुभव करते जायें, इसके लिए बहुत पावरफुल अभ्यास करना पड़ेगा।

समाज सेवा प्रभाग (सोशल विंग) - इन्हों का भी कार्य है बिगड़ी को प्रैक्टिकल बनाना। वह तो गांव को बदलते हैं, परिवार को बदलते हैं, परिवार की समस्याओं को समाप्त कर दिखाते हैं। लेकिन उनका होता है टैम्प्रेरी। सोशल विंग वालों को ऐसे कोई मिसाल दिखाने चाहिए जो पहले कोई बहुत दु:खी परिवार हों और परिवर्तन हो सुखी बन जाए, ऐसे यहाँ परिवार तो बहुत आते हैं। तो गवर्मेन्ट के आगे प्रैक्टिकल मिसाल दिखाने चाहिए। इतने परिवार बदलकर और क्या अनुभव करते हैं, वह गवर्मेन्ट के सामने लाना चाहिए। जैसे बताया कि कोई ऐसे प्रत्यक्ष प्रमाण परिवर्तन के अभी स्टेज पर लाओ। मैसेज तो दे रहे हैं, कार्य तो कर रहे हैं। लेकिन अभी गवर्मेन्ट की आंखों में आना चाहिए कि स्प्रीचुअल पावर से सोशल वर्ग क्या नहीं कर सकता या क्या नहीं कर रहा है। अभी जैसे पार्क का सुनाया (बाम्बे के पार्क), कितनी सेवा हो रही है। कितने बच्चों को आराम मिल रहा है, यह रिजल्ट गवर्मेन्ट के सामने आना चाहिए। तो जो सोशल वर्ग के नेतायें हैं, उन्हों के पास रिज़ल्ट आनी चाहिए। अगर लिस्ट निकालो तो मुख्य-मुख्य परिवार की लिस्ट काफी निकाल सकते हो। यहाँ तो है ही प्रैक्टिकल। वह सोशल वर्क क्या करते हैं! कपड़ा बाँटते हैं, पैसे की मदद करते हैं.... तो आप लोग परिवार में जो सन्तुष्टता लाते हैं, जिससे उसकी एकॉनामी भी अच्छी हो जाती है, कपड़े, खाने पीने में मुश्किलात खत्म हो जाती है। आराम से रहते हैं। थोड़े में भी बहुत आराम से जिदंगी बिता रहे हैं, तो जो वह करते हैं उसको भेंट करके अलौकिक रूप से आप क्या कर रहे हैं, वह बताओ, और ऐसे-ऐसे जो एकदम बिगड़े हुए हो, उन्हों का संगठन बुलाकर उन्हों को बताओ कि देखो क्या हम कर रहे हैं। तो क्या होगा कि गवर्मेन्ट की नज़र में आने से, गवर्मेन्ट का कोई भी आता है तो एडवरटाइज़ भी सहज हो जाती है। आप बुलायेंगे प्रेस वालों को तो थोड़े आयेंगे और वह बुलायेंगे तो पीछे-पीछे आयेंगे। तो ऐसे ढंग से सबको प्रैक्टिकल दृष्टान्त दिखाओ कि हम क्या कर रहे हैं। कर बहुत रहे हैं लेकिन गुप्त है। अच्छा।

राजनेता सेवा प्रभाग - पॉलिटिशियन वाले भी अपने-अपने स्थान वालों की सेवा तो कर ही रहे हैं। सेवा कर रहे हैं और होती रहेगी। पॉलिटिशन वालों को विशेष यह अटेन्शन रखना चाहिए - जैसे समाचार सुना कि हैदराबाद में चीफ मिनिस्टर प्रभावित होने के कारण वहाँ के गवर्मेन्ट की सेवा सहज हो रही है। ऐसे हर स्थान पर कोई न कोई ऐसे सम्पर्क वाले हैं जिन्हों को थोड़ा और आगे ला सकते हैं। हर एक शहर में अपनी-अपनी गवर्मेन्ट में कुछ-न-कुछ अच्छे हैं, तो बापदादा समझते हैं कि जैसे हैदराबाद वाला विशेष है, उसके द्वारा भिन्न-भिन्न स्थान पर ऐसे क्वालिटी जो आगे आ सकती है, थोड़ा सा उसके पीछे मेहनत करें तो क्वालिटी निकल सकती है। ऐसा ग्रुप एक तैयार करो। भले भिन्न-भिन्न शहरों के हों लेकिन ऐसी क्वालिटी हो जो समझते हो, समीप आ सकते हैं। और फिर उस हैदराबाद वाले को उस संगठन में बुलाकर औरों की सेवा कराओ। वह प्रैक्टिकल उसका अनुभव सुनने से हिम्मत में आयेंगे तो हम भी कर सकते हैं। तो ऐसा संगठन पहले इकट्ठे करो, रिपोर्ट तो आती है ना। तो संगठन इकट्ठे करके फिर जगह-जगह पर थोड़ा-सा गवर्मेन्ट के अन्दर जाते रहेंगे तो बड़ों तक भी पहुंच जायेंगे क्योंकि बड़ों को फुर्सत कम होती है लेकिन बीच वाले आ सकते हैं। जैसे धर्म-नेताओं में बीच वाले आये ना। कोई पहला नम्बर वाले तो नहीं आये। लेकिन बीच वालों द्वारा उन्हों तक पहुंच सकते हैं, रास्ता है। तो ऐसे आप भी ऐसा ग्रुप तैयार करके आगे थोड़ा जाते रहो। आप इस समय `राज्य और धर्म' - दोनों स्थापन कर रहे हैं तो राजधानी वाले वंचित तो नहीं रहे ना। फिर भी साथी तो हैं। तो ऐसे करके देखो। अच्छा।

धार्मिक सेवा प्रभाग - धर्म के वर्ग वालों ने एक कार्य करके तो दिखाया लेकिन यह रिहर्सल थी। रिहर्सल में सफलता मिली यह तो अच्छा हुआ। अभी और जो मुख्य हैं उन्हों को भी सिर्फ आध्यात्मिक-शक्ति का महत्त्व बताके, आध्यात्मिक शक्ति से आप क्या कर सकते हैं, वह बताओ। भले डिस्कशन में नहीं जाओ, लेकिन पहले समीप आवें और इसी पर ही चर्चा हो तो आध्यात्मिक शक्ति मिलकर क्या कर सकती है। आध्यात्मिक-शक्ति वालों की कितनी बड़ी ज़िम्मेवारी है, इस टॉपिक को लेकर उन्हों को समीप लाओ और समीप लाकर फिर सम्पर्क में लाओ, यहाँ आबू तक ले आओ। तो आबू का प्रवाह, प्रभाव आपेही उन्हों को आकर्षित करेगा। ऐसे नहीं सोचना कि यात्रा निकाली, नेताओं का सम्मेलन हो गया, बहुत अच्छा। नहीं। और आगे बढ़ना है, फिर और आगे बढ़ना है। आगे बढ़ते ही जाना है।

रथ यात्री - रथ यात्रियों की तो स्वागत बहुत हो चुकी है और अभी भी देखो रथ यात्रियों को सभी ने कितनी तालियां बजाई, और ग्रुप में नहीं बजाई। तो बहुत अच्छा, इस यात्रा को वरदान था, बापदादा ने पहले भी सुनाया कि रथ यात्रियों को विशेष बापदादा द्वारा वरदान थे - एक तो - निर्विघ्न, किसी भी प्रकार का विघ्न नहीं आया। दूसरा - सभी के सभी स्वस्थ रहे। बीमारी का विघ्न भी नहीं आया। और तीसरा - विशेष सभी में उमंग-उत्साह होने के कारण अथक रहे। तो यह वरदान प्रत्यक्ष रूप में सभी ने देखा और अनुभव किया। जहाँ उमंग-उत्साह होता है वहाँ यह सब बातें स्वत: प्राप्त होती हैं। तो सफलतापूर्वक सभी पहुँच गये और अभी भी शिवरात्रि के उत्सव में रथ तो जहाँ-तहाँ जा नहीं सकते लेकिन जो वीडियो फिल्म निकाली है तो हर स्थान पर इस वीडियो फिल्म द्वारा सेवा अच्छी होनी ही है। तो आपकी यात्रा वीडियो में आ गई अर्थात् अमर हो गई, चलती रहेगी। अच्छा है। निमित्त तो इन्वेन्शन जगदीश ने किया। ऐसे ही शुरू से वरदान है - इन्वेन्शन करने का। अभी भी इस वरदान को आगे बढ़ाते रहना। अच्छा है। एक की इन्वेन्शन से सभी तरफ उमंग-उत्साह आ गया। तो इन्वेन्शन की मुबारक हो। अच्छा।

विदेश का इन्टरनेशनल सर्विस ग्रुप - डबल फारेनर्स डबल फायदा उठाने में होशियार हैं। मधुबन की भी रिफ्रेशमेंट और सेवा के प्लैन भी बन गये। तो अच्छा चांस लेते हैं। बापदादा को भी खुशी होती है, जब संगठित रूप में मिलकर सेवा का प्लैन बनाते हैं। जिस प्लैन में सब तरफ के निमित्त बनी हुई आत्माओं की दृष्टि पड़ जाती है, वायब्रेशन मिल जाते हैं तो उस प्लैन में दुआयें भर जाती हैं और चारों ओर एक ही सेवा का प्लैन चलने से चारों ओर का फैला हुआ आवाज़, आवाज़ बुलन्द करता है। तो अभी भी प्लैन बनाया है ना - कल्चर और पीस का। टॉपिक अच्छी है। देखो दोनों रीति से इस टॉपिक पर सेवा कर सकते हो। चाहे कल्चर पर करो, चाहे पीस पर करो। चाहे दोनों मिलाकर करो। लेकिन शान्ति की अनुभूति तो आजकल सभी चाहते ही हैं और अपना कल्चर भी अच्छा बनाने तो चाहते ही हैं।   समझते हैं कि कुछ और एडीशन चाहिए जिससे कल्चर अच्छे ते अच्छा, ऊँचे-ते ऊँचा हो जाए। तो टॉपिक अच्छी है और जैसे उमंग-उत्साह से चाहे भारत, चाहे विदेश दोनों तरफ प्लैन बना रहे हैं, सफलता तो है ही। और अच्छा है, इसी बहाने से टॉपिक उन्हों की है और प्रैक्टिकल आप हैं। तो टॉपिक और प्रैक्टिकल मिल जायेगा तो अच्छा होगा। अच्छा है। यू.एन. की सेवा भी अच्छी हो रही है, उसके कारण और-और की भी सेवा हो रही है। धीरे-धीरे नान-गवर्मेन्ट से गवर्मेन्ट तक भी पहुँच जायेंगे। अच्छा चल रहा है ना! कनेक्शन भी अच्छा बढ़ता जाता है। सहयोग भी देते रहते हैं। तो सहयोगी बनाना, सम्पर्क में लाना। जितना-जितना सम्पर्क में आयेंगे उतना ही सहयोगी स्वत: ही बनते जाते हैं और जितनी सेवा फैलती जाती है तो उल्टा-सुल्टा वायुमण्डल उसमें दब जाता है। तो अच्छी बात है। बापदादा प्रोजेक्ट के बारे में पहले ही मुबारक दे रहे हैं। अच्छा।

बाकी डबल विदेशी चाहे मीटिंग वाले, चाहे ग्रुप्स में आने वाले सभी को बापदादा बहुत-बहुत स्नेह सम्पन्न मुबारक दे रहे हैं। अच्छी हिम्मत रखते हैं। बापदादा ने सेवा का उमंग-उत्साह और हिम्मत इसमें रिजल्ट अच्छी देखी है। बाकी एड करना है - `सेवा और स्व-उन्नति का बैलेन्स।' सेवा अच्छी चल रही है और सेवा ही विघ्न-विनाशक बनी हुई है। तो सभी डबल फारेनर्स को बापदादा सदैव यादप्यार देते हैं और सदा ही याद-प्यार साथ रहेगा। अच्छा।

महाराष्ट्र ज़ोन सेवा में आया है - अच्छा - आधा हाल तो महाराष्ट्र है। महाराष्ट्र में सेवा की वृद्धि अच्छी हो रही है। तो महाराष्ट्र 9 लाख जल्दी बना सकेगा। ऐसा है ना! 9 लाख बनाने में नम्बरवन लेंगे ना! अच्छा है। आप सबको भी खुशी होती है ना! अगर आपके परिवार में वृद्ध होती है तो खुश होते हो ना! और सब यही चाहते हैं कि जल्दी-जल्दी वृद्धि हो जाए। तो महाराष्ट्र वृद्धि कर रहा है और सभी ज़ोन भी ऐसे वृद्धि कर जल्दी-जल्दी सम्पन्न बन, सम्पूर्ण बन बाप के साथ चल सकेंगे। साथ चलना है, यह भूलना नहीं। बापदादा ने पहले भी कहा है कि प्यार से नहीं चलेंगे तो 86 जबरदस्ती भी ले चलेंगे! साथ नहीं चलेंगे तो पीछे-पीछे भी लेके चलेंगे। लेकिन मज़ा नहीं होगा। अच्छा।

चारों ओर के देश विदेश के साकार स्वरूप में या सूक्ष्म स्वरूप में मिलन मनाने वाले सर्व स्वराज्य अधिकारी आत्माओं को, सदा इस श्रेष्ठ अधिकार को अपने चलन और चेहरे से प्रत्यक्ष करने वाले विशेष आत्मायें, सदा बापदादा को हर कदम में फालो करने वाले, सदा मन को स्वच्छ और बुद्धि को क्लीयर रखने वाले ऐसे स्वत: तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को, सदा साथ रहने वाले और साथ चलने वाले डबल लाइट बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।